आम आदमी पार्टी के संयोजक और दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने गुरुवार को दिल्ली के जाट समुदाय के लिए आरक्षण का मुद्दा उठाया। उन्होंने केंद्र सरकार पर जाट समाज को लगातार धोखा देने का आरोप लगाते हुए कहा कि दिल्ली के जाटों को केंद्र सरकार के किसी कॉलेज, यूनिवर्सिटी या संस्था में आरक्षण नहीं मिलता।
जाट आरक्षण पर सवाल
केजरीवाल ने कहा, “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह को दिल्ली के जाट समाज की याद सिर्फ चुनाव से पहले आती है। राजस्थान के जाटों को दिल्ली में आरक्षण मिलता है, लेकिन दिल्ली के जाटों को यह अधिकार नहीं दिया जाता। यह अन्याय पिछले 10 सालों से हो रहा है।”
उन्होंने आगे बताया कि दिल्ली की राज्य ओबीसी लिस्ट में शामिल पांच जातियां केंद्र की ओबीसी लिस्ट में नहीं हैं, जिससे इन समुदायों को शिक्षा और रोजगार के कई अवसरों से वंचित होना पड़ता है।
प्रधानमंत्री को लिखी चिट्ठी
केजरीवाल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक चिट्ठी लिखी, जिसमें उन्होंने दिल्ली के जाट समाज को ओबीसी की केंद्र सूची में शामिल करने की मांग की। उन्होंने आरोप लगाया कि 2015 में पीएम मोदी ने जाट समाज के नेताओं को बुलाकर केंद्र की ओबीसी लिस्ट में शामिल करने का वादा किया था। 2019 में गृहमंत्री अमित शाह ने भी ऐसा ही आश्वासन दिया था, लेकिन इन वादों को अब तक पूरा नहीं किया गया।
आरक्षण से वंचित बच्चों की समस्या
केजरीवाल ने सवाल उठाया, “राजस्थान के जाट समाज के छात्रों को दिल्ली विश्वविद्यालय में आरक्षण का लाभ मिलता है, तो दिल्ली के जाट समाज को क्यों नहीं?” उन्होंने कहा कि केंद्र की ओबीसी सूची में न होने के कारण दिल्ली के जाट समाज के हजारों छात्र दिल्ली विश्वविद्यालय जैसे संस्थानों में दाखिला लेने से वंचित रह जाते हैं।
एक ही सीट से चुनाव लड़ने का ऐलान
केजरीवाल ने यह भी ऐलान किया कि वह इस बार केवल एक सीट से चुनाव लड़ेंगे। उन्होंने कहा कि उनकी प्राथमिकता दिल्ली के जाट समाज को न्याय दिलाना है।
केंद्र सरकार पर निशाना
उन्होंने केंद्र की बीजेपी सरकार पर तीखा हमला बोलते हुए कहा कि पिछले 10 सालों से जाट समुदाय के साथ सिर्फ वादे किए गए हैं, लेकिन उन्हें पूरा नहीं किया गया। उन्होंने कहा, “केंद्र की बीजेपी सरकार ने जाट समाज के साथ अन्याय किया है और अब इसे खत्म करना जरूरी है।”
केजरीवाल ने इस मुद्दे को लेकर चुनाव आयोग के साथ बैठक करने की भी बात कही। अब देखना होगा कि यह मुद्दा आगामी चुनावों में क्या प्रभाव डालता है।