Tuesday, December 9, 2025
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अमेरिका और भारत की विदेश नीति: ओबामा से ट्रंप और आज तक की कहानी

भारत और अमेरिका के रिश्ते हमेशा से चर्चा में रहे हैं। चाहे बात Barack Obama की हो या Donald Trump की, दोनों अमेरिकी राष्ट्रपतियों के समय भारत को अलग-अलग तरह का समर्थन और विरोध मिला। इस पूरे लेख में हम विस्तार से समझेंगे कि किस तरह से अमेरिका ने अलग-अलग समय पर भारत का साथ दिया या हमें निराश किया, और क्यों आज भारत की विदेश नीति पर सवाल खड़े हो रहे हैं।


ओबामा का दौर: भारत को मिला खुला समर्थन

सन 2008 में मुंबई आतंकी हमले के बाद, तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने साफ कहा था –
👉 “India has the right to self-defence.”
यानि भारत को आत्मरक्षा का अधिकार है।

अमेरिका का रुख

  • 2009 में प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह और बराक ओबामा ने संयुक्त बयान जारी किया।
  • इसमें कहा गया कि आतंकवाद के अड्डों को अफगानिस्तान और पाकिस्तान से खत्म करना होगा।
  • ओबामा ने खुलकर पाकिस्तान की आलोचना की और उससे आतंकियों पर कार्रवाई करने को कहा।

👉 इस दौर में भारत ने महसूस किया कि अमेरिका वास्तव में पाकिस्तान पर दबाव बना रहा है और भारत के हितों को प्राथमिकता दे रहा है।

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ट्रंप का दौर: भ्रम और निराशा

अब तुलना कीजिए डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल से।

पहालगाम आतंकी हमले के बाद ट्रंप का बयान

  • ट्रंप ने कहा कि उनके भारत और पाकिस्तान दोनों से करीबी रिश्ते हैं।
  • जबकि हमले की जिम्मेदारी पाकिस्तानी आतंकी संगठन TRF ने ली थी।
  • बावजूद इसके, पाकिस्तान को सीधा दोषी ठहराने की बजाय ट्रंप ने दोनों देशों को एक ही तराजू में तौल दिया।

👉 यह भारत के लिए बहुत ही निराशाजनक बयान था।

“Howdy Modi” और “Namaste Trump” इवेंट

  • 2019 में ह्यूस्टन में प्रधानमंत्री मोदी ने ट्रंप के लिए “Abki Baar Trump Sarkar” तक कह दिया।
  • 2020 में भारत में “Namaste Trump” का भव्य आयोजन हुआ।
  • लेकिन इसके बाद भी जब ज़रूरत थी, ट्रंप ने पाकिस्तान का ही साथ दिया।

विदेश नीति की विफलता: मोदी बनाम मनमोहन

  • डॉ. मनमोहन सिंह ने कभी भी ओबामा के लिए ऐसे मेगा-शो नहीं किए।
  • लेकिन ओबामा ने फिर भी भारत का लगातार समर्थन किया।
  • वहीं मोदी सरकार ने ट्रंप के लिए बड़े-बड़े कार्यक्रम किए, लेकिन बदले में भारत को ठोस समर्थन नहीं मिला।

👉 सवाल ये उठता है कि इतनी यात्राओं, इतने कार्यक्रमों और इतने दिखावे का क्या फायदा, जब मुश्किल समय पर अमेरिका ने पाकिस्तान की आलोचना तक नहीं की?


इतिहास से सीख: इंदिरा गांधी का साहस

1971 के युद्ध में, जब अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने पाकिस्तान का साथ दिया और भारत को धमकाने के लिए 7th Fleet हिंद महासागर भेजा, तब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने साफ कहा –
👉 “India will not be intimidated.”

परिणामस्वरूप पाकिस्तान दो टुकड़ों में बंटा और बांग्लादेश का जन्म हुआ।

इंदिरा गांधी ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी साफ कह दिया कि कश्मीर भारत का आंतरिक मामला है।


मोदी सरकार के दौर में कश्मीर पर अमेरिकी हस्तक्षेप

  • नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में डोनाल्ड ट्रंप ने कश्मीर मसले पर मध्यस्थता की बात कही।
  • यहां तक कि ट्रंप ने सोशल मीडिया पर पोस्ट किया कि वे भारत-पाकिस्तान के बीच विवाद सुलझा सकते हैं।
  • जबकि भारत हमेशा से कहता आया है कि कश्मीर द्विपक्षीय मुद्दा है और इसमें किसी तीसरे देश की दखलअंदाजी नहीं चलेगी।

👉 यह भारत की विदेश नीति के लिए एक बड़ी हार मानी गई।


पड़ोसी देशों के साथ बिगड़ते रिश्ते

मोदी सरकार के समय सिर्फ अमेरिका ही नहीं, बल्कि पड़ोसी देशों के साथ भी रिश्ते खराब हुए:

  • पाकिस्तान – रिश्ते बेहद तनावपूर्ण, बार-बार आतंकी हमले।
  • चीन – पांच बार मुलाकातों के बावजूद सीमा विवाद और तनाव जारी।
  • बांग्लादेश – पहले भारत का करीबी, अब चीन की तरफ झुकाव।
  • श्रीलंका – चीनी कर्ज़ जाल में फँसा, भारतीय चिंताओं को नज़रअंदाज कर रहा।
  • भूटान – चीन के साथ समझौते कर रहा है, जिससे भारत को खतरा।
  • नेपाल – चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव में शामिल।
  • मालदीव – चीन और तुर्की के साथ रक्षा व व्यापार समझौते।
  • ईरान – भारत से ज्यादा पाकिस्तान को तवज्जो।

👉 साफ है कि भारत की विदेश नीति में लगातार गिरावट आई है।


विदेश नीति: शतरंज या क्रिकेट?

विदेश नीति को हमेशा शतरंज की तरह माना गया है –

  • बुद्धिमत्ता, रणनीति और धैर्य का खेल।
  • लेकिन विदेश मंत्री एस. जयशंकर कहते हैं कि विदेश नीति क्रिकेट जैसी है।
  • उनके “sigma reels” और “slamming replies” ट्विटर पर तो छा जाते हैं, लेकिन असल में विदेश नीति इतनी सतही नहीं हो सकती।

👉 यही वजह है कि आज भारत कई देशों से अलग-थलग पड़ता जा रहा है।


इज़रायल-फ़िलिस्तीन और भारत की “बैलेंसिंग पॉलिसी”

  • मोदी सरकार में भारत का झुकाव इज़रायल की तरफ़ साफ दिखता है।
  • लेकिन आधिकारिक स्तर पर भारत ने अभी तक हमास को आतंकवादी संगठन घोषित नहीं किया है।
  • 2018 में पीएम मोदी ने फ़िलिस्तीन का दौरा भी किया था।

👉 मतलब भारत अब पूरी तरह इज़रायल के पक्ष में भी नहीं है और पूरी तरह फ़िलिस्तीन के साथ भी नहीं। इसे बैलेंसिंग एक्ट कहा जा सकता है।


रूस-यूक्रेन युद्ध और भारत की तटस्थता

  • भारत ने न तो रूस की खुलकर आलोचना की और न ही यूक्रेन का साफ समर्थन किया।
  • यह भी एक तरह का तटस्थ रवैया रहा, लेकिन इससे सवाल उठे कि क्या यह “Non-Alignment” है या सिर्फ़ दोनों को खुश रखने की कोशिश

असली कारण: विदेश नीति का राजनीतिकरण

  • मनमोहन सिंह के समय विदेश नीति कभी भी चुनावी मुद्दा नहीं बनी।
  • लेकिन मोदी सरकार ने विदेश नीति को इलेक्शन प्रोपेगेंडा बना दिया।
  • “Howdy Modi”, “Namaste Trump” जैसे इवेंट्स ने ज्यादा असर जनता पर डाला, लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत को फायदा नहीं हुआ।

निष्कर्ष: भारत को किस राह पर जाना चाहिए?

विदेश नीति भावनाओं पर नहीं, तर्क और रणनीति पर आधारित होनी चाहिए।

  • सिर्फ़ इवेंट्स और दिखावे से काम नहीं चलेगा।
  • पड़ोसी देशों और बड़े शक्तियों से रिश्ते रणनीतिक तरीके से बनाने होंगे।
  • भारत को अपनी पारंपरिक Non-Alignment Policy को नए रूप में अपनाना होगा।
  • और सबसे ज़रूरी, विदेश नीति को घरेलू राजनीति से अलग रखना होगा।

👉 वरना आज की तरह भारत बार-बार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर असहज स्थिति में आता रहेगा।

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