नई दिल्ली | भारत में फाइटर जेट के लिए स्वदेशी टर्बोफैन इंजन “kaveri engine” तैयार किया जा रहा है, जो रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की दिशा में एक बड़ा कदम है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (पूर्व में ट्विटर) पर बीते कुछ दिनों से #FundKaveriEngine ट्रेंड कर रहा है। देशभर के टेक और डिफेंस एक्सपर्ट्स, छात्रों और नागरिकों ने एकजुट होकर भारत सरकार से इस प्रोजेक्ट को तेज़ करने और अधिक बजट देने की मांग की है। लोगों का कहना है कि यह प्रोजेक्ट भारत को मिलिट्री इंजन टेक्नोलॉजी में सुपरपावर बना सकता है।
🔍 क्या है kaveri engine?
kaveri engine भारत का स्वदेशी टर्बोफैन जेट इंजन है जिसे रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) की संस्था गैस टर्बाइन रिसर्च एस्टैब्लिशमेंट (GTRE) द्वारा विकसित किया जा रहा है। इसका नाम कर्नाटक की पवित्र कावेरी नदी के नाम पर रखा गया है।
- यह इंजन करीब 80 किलो न्यूटन (kN) थ्रस्ट पैदा कर सकता है।
- इसे खास तौर पर लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट तेजस (LCA Tejas) के लिए डिजाइन किया गया था।
- यह इंजन हाई टेंपरेचर और हाई स्पीड स्थितियों में भी बेहतर परफॉर्म करता है।
🎯 इसका उद्देश्य क्या है?
भारत अभी अपने फाइटर जेट्स, जैसे तेजस, के लिए अमेरिका और फ्रांस जैसे देशों से इंजन आयात करता है। इसका न सिर्फ भारी खर्च होता है, बल्कि रणनीतिक निर्भरता भी बढ़ती है। कावेरी इंजन का मकसद है:
- भारत को आत्मनिर्भर बनाना
- विदेशी इंजनों पर निर्भरता खत्म करना
- भविष्य में भारतीय ड्रोन, UCAV और फाइटर जेट्स में पूरी तरह स्वदेशी इंजन इस्तेमाल करना
⚙️ kaveri engine की टेक्नोलॉजी और खासियतें
- लो-बायपास टर्बोफैन डिजाइन – ज्यादा थ्रस्ट और बेहतर फ्यूल एफिशिएंसी
- फ्लैट-रेटेड डिज़ाइन – हाई टेंपरेचर पर भी थ्रस्ट लॉस नहीं होता
- ट्विन-स्पूल कॉन्फ़िगरेशन – एफिशिएंसी और पावर में इजाफा
- एडवांस्ड मटेरियल्स – सिंगल क्रिस्टल ब्लेड्स, निकेल बेस्ड सुपरएलॉय, बेहतरीन कूलिंग टेक्नोलॉजी
- FADEC सिस्टम – डबल-लेन फुल अथॉरिटी डिजिटल इंजन कंट्रोल, जो परफॉर्मेंस को ऑटोमैटिक ऑप्टिमाइज़ करता है
🛠️ अब तक क्या चुनौतियाँ आईं?
- थ्रस्ट की कमी: लक्ष्य 81kN था, पर इंजन 75kN तक ही पहुंच पाया।
- 1998 के परमाणु परीक्षणों के बाद प्रतिबंध: तकनीकी सहायता और पार्ट्स की सप्लाई पर असर पड़ा।
- तकनीकी जटिलता: जेट इंजन बनाना बेहद कठिन काम है, जिसमें एयरोथर्मल डायनामिक्स, मेटलर्जी और हाई-टेम्परेचर मटेरियल्स की जरूरत होती है।
इन समस्याओं के चलते 2008 में कावेरी को तेजस प्रोजेक्ट से हटा दिया गया और तेजस में अमेरिकी GE F404 इंजन लगाया गया।
✈️ वर्तमान स्थिति क्या है?
- रूस में कावेरी इंजन के फ्लाइट टेस्ट हो रहे हैं।
- अब तक इंजन ने ग्राउंड पर सफलता से 275 घंटे का टेस्ट पास किया है।
- फ्लाइट कंडीशन में इसे करीब 25 घंटे का अतिरिक्त टेस्टिंग किया जाना बाकी है।
- अब इसे ड्रोन, UCAV (Unmanned Combat Aerial Vehicles) और अन्य प्लेटफॉर्म्स में इस्तेमाल के लिए फिट किया जा रहा है।
- इसका ड्राई वर्जन 49-51 kN थ्रस्ट देता है।
🌍 दुनिया में कौन-कौन से देश बनाते हैं जेट इंजन?
फाइटर जेट इंजन जैसी हाई-एंड टेक्नोलॉजी अब तक केवल चार देशों के पास थी:
- अमेरिका
- रूस
- ब्रिटेन
- फ्रांस
चीन ने भी कुछ इंजन बनाए हैं, लेकिन अधिकतर रिवर्स इंजीनियरिंग से। वह आज भी रूस से इंजन आयात करता है।
जेट इंजन बनाना इसलिए मुश्किल है क्योंकि:
- इसमें तापमान 1400°C तक पहुंचता है
- उस तापमान में मेटल्स को टिकाए रखना और काम करना सबसे बड़ी चुनौती होती है
📢 जनता की मांग: अब वक्त है कावेरी पर तेज़ी से काम करने का
सोशल मीडिया पर देश के युवाओं और रक्षा विशेषज्ञों ने एक सुर में सरकार से अपील की है कि:
- कावेरी इंजन को एक नेशनल प्रायोरिटी प्रोजेक्ट घोषित किया जाए
- इसके लिए बजट बढ़ाया जाए
- HAL, GTRE और निजी कंपनियों के सहयोग से इसे जल्द पूरा किया जाए
🔚 निष्कर्ष
कावेरी इंजन सिर्फ एक इंजन नहीं, बल्कि भारत के डिफेंस आत्मनिर्भरता के सपने की नींव है। अगर इसे समय पर फंडिंग और राजनीतिक समर्थन मिला, तो भारत दुनिया के गिने-चुने देशों में शामिल हो सकता है जो अपने लड़ाकू विमान के इंजन खुद बनाते हैं।