Thursday, January 23, 2025
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मनोज बाजपेयी ने ‘सत्या’ की सफलता और अक्षय खन्ना की मदद पर साझा किए अनुभव

अभिनेता मनोज बाजपेयी ने हाल ही में निर्देशक राम गोपाल वर्मा की फिल्म ‘सत्या’ को लेकर अपनी भावनाएं साझा कीं। उन्होंने खुलासा किया कि फिल्म की जबरदस्त सफलता ने उन्हें शुरुआत में दोषी और असहज महसूस कराया। यह अभिनेता अक्षय खन्ना थे, जिन्होंने मनोज को इन भावनाओं से उबरने और अपनी उपलब्धियों को स्वीकार करने की सलाह दी।

मनोज बाजपेयी ने कहा, “सत्या ने मेरे करियर पर स्थायी प्रभाव छोड़ा और मुझे सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार दिलाया। लेकिन अचानक मिली प्रसिद्धि ने मुझे अंदर से हिला दिया।”

अक्षय खन्ना की मदद और सलाह

मनोज ने बताया कि उन्होंने लंबे समय तक संघर्ष किया था और अचानक मिली सफलता से खुद को जोड़ नहीं पाए। अक्षय खन्ना ने उन्हें इस कठिन दौर से उबरने में मदद की। उन्होंने मनोज से कहा, “तुम अपनी सफलता के बारे में इतना दोषी क्यों महसूस कर रहे हो? इसे स्वीकार करो।”

25 साल का संघर्ष और नई पहचान

मिड-डे से बातचीत में मनोज ने बताया कि 25 सालों तक किसी बड़ी सफलता के बिना काम करने के बाद अचानक मिली पहचान से वह असहज हो गए थे। उन्होंने कहा, “लोग मुझसे पूछते थे कि अब आप अच्छा महसूस कर रहे होंगे, लेकिन मेरा जवाब होता था, ‘कैसे? मैं इतने सालों तक इस ध्यान और अटेंशन से दूर रहा हूं, इसलिए मैं ऐसा महसूस कर रहा हूं।’”


बड़े पर्दे से ओटीटी तक का सफर

मनोज बाजपेयी ने अपनी प्रतिभा का जलवा बड़े पर्दे और ओटीटी दोनों माध्यमों पर दिखाया है।

  • उनकी नेटफ्लिक्स ब्लैक कॉमेडी क्राइम थ्रिलर सीरीज ‘किलर सूप’, जिसमें उन्होंने कोंकणा सेन शर्मा के साथ अभिनय किया, को दर्शकों का भरपूर प्यार मिला।
  • उनकी आने वाली फिल्मों में ‘साइलेंस 2: द नाईट आउल बार शूटआउट’, ‘भैया जी’, और ‘डिस्पैच’ शामिल हैं।

‘सत्या’ की ऐतिहासिक सफलता

1998 में रिलीज हुई ‘सत्या’ भारतीय सिनेमा के लिए एक मील का पत्थर साबित हुई। इस फिल्म ने न केवल मनोज बाजपेयी को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया, बल्कि उन्हें अभिनय की दुनिया में एक अलग पहचान दी। फिल्म का किरदार भीकू म्हात्रे आज भी याद किया जाता है।

मनोज बाजपेयी की प्रेरणा

मनोज की यह कहानी उन लोगों के लिए प्रेरणा है जो जीवन में संघर्ष के बाद सफलता पाने पर खुद को दोषी महसूस करते हैं। उन्होंने साबित किया कि सफलता को स्वीकार करना और उससे सीखना भी उतना ही जरूरी है जितना संघर्ष करना।

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