Sunday, August 10, 2025
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पाकिस्तान में तेल के विशाल भंडार: ट्रंप की डील और हकीकत

पाकिस्तान के तेल भंडार को लेकर भारत, पाकिस्तान और अंतरराष्ट्रीय राजनीति में अचानक चर्चा तेज हो गई है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के हालिया एलान ने इस बहस को और गर्मा दिया है कि आख़िर पाकिस्तान के पास तेल के कौन–कौन से बड़े भंडार मौजूद हैं? क्या वाकई अमेरिका–पाकिस्तान में समझौते से हालात बदल सकते हैं? इस आर्टिकल में आपको ऑर्थेंटिक जानकारी, पृष्ठभूमि, ज़रूरी डेटा और दोनों देशों के दृष्टिकोण सहित सब कुछ जानने को मिलेगा।

ट्रंप का बयान: चर्चा की शुरुआत

डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी सोशल मीडिया पोस्ट में दावा किया कि अमेरिका–पाकिस्तान ने तेल के ‘विशाल भंडार’ को विकसित करने का करार किया है। ट्रंप के मुताबिक़, ‘हम कंपनी चुनने की प्रक्रिया में हैं, जो इस प्रोजेक्ट का नेतृत्व करेगी। हो सकता है एक दिन पाकिस्तान भारत को तेल बेचने लगे।’

यह बयान ऐसे समय में आया है जब पाकिस्तान का तेल और गैस उत्पादन पिछले कई सालों में गिरावट पर है। देश को अपनी जरूरतों का 80–85% तेल और गैस आयात करना पड़ता है, जिससे विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव बढ़ता है।

पाकिस्तान के तेल भंडार: हकीकत क्या है?

पाकिस्तान पेट्रोलियम इंफॉर्मेशन सर्विसेज़ के मुताबिक़ 2024 के अंत तक पाकिस्तान के पास केवल 2.38 करोड़ बैरल ‘प्रमाणित’ भंडार हैं, जबकि भारत के पास 4.8 अरब और अमेरिका के पास 25 अरब से भी ज्यादा बैरल तेल भंडार हैं। यानी पाकिस्तान का हिस्सा विश्व-स्तर पर बहुत मामूली है।

हालांकि, अमेरिकी यूएस एनर्जी इंफॉर्मेशन एडमिनिस्ट्रेशन का अनुमान है कि पाकिस्तान में संभावित तौर पर नौ अरब बैरल तक का कच्चा तेल छुपा हुआ हो सकता है, मगर इसमें से व्यावसायिक रूप से कितना निकाला जा सकता है, यह वक्त ही बताएगा।

पाकिस्तान में कहाँ–कहाँ है तेल की संभावना?

1. सिंध प्रांत:
यह पाकिस्तान का सबसे सक्रिय तेल खोज और उत्पादन क्षेत्र है, जहां 247 से ज्यादा कुएं हैं। कादिरपुर, उच, सुई, और माड़ी प्रमुख ऑयल फील्ड्स हैं।

2. पंजाब (अटॉक, टाल, फत्तह):
पेट्रोलियम का उत्पादन यहां बहुत पहले से हो रहा है और कुछ नए ब्लॉक्स की खोज भी जारी है।

3. बलूचिस्तान:
भू-वैज्ञानिकों के अनुसार, बलूचिस्तान के रेगिस्तानी इलाकों में विशाल पेट्रोलियम भंडार छिपे हैं। लेकिन यहां की परिस्थिति—जैसे सुरक्षा और राजनीतिक अस्थिरता—विदेशी निवेश को रोकती है।

4. खैबर पख्तूनख्वा:
हाल ही में लकी मरवत और उत्तरी वजीरिस्तान में नए छोटे-बड़े भंडार मिले हैं, जिनका उत्पादन धीरे-धीरे शुरू हो रहा है।

उत्पादन और निवेश की चुनौती

पाकिस्तान अपने तेल उपभोग का मात्र 10–15% हिस्सा ही देश में उत्पन्न कर पाता है, शेष आयात निर्भरता पर है। औद्योगिक उत्पादन में गिरावट, विदेशी कंपनीज का सीमित निवेश और तकनीक की कमी—ये सब इस क्षेत्र के सामने मुख्य चुनौतियां हैं।

ऊर्जा क्षेत्र के विशेषज्ञों का कहना है कि अतीत में कई अमेरिकी कंपनियां जैसे ऑक्सिडेंटल पेट्रोलियम और यूनियन टेक्सस, पाकिस्तान में सक्रिय रही हैं, मगर अब स्थानीय मुद्दों और सुरक्षा कारणों से विदेशी निवेश घट गया है।

क्या ट्रंप–पाकिस्तान डील का असर सीधा दिखेगा?

ट्रंप के नए करार की वजह से अमेरिका एक बार फिर पाकिस्तान के तेल क्षेत्र में निवेश की योजना बना सकता है। इस साझेदारी से अमेरिकी टेक्नोलॉजी और पूंजी के जरिए, पाकिस्तान के तेल भंडारों का दोहन बढ़ सकता है।

मगर विशेषज्ञ मानते हैं कि “विशाल भंडार” वाला दावा वैज्ञानिक दृष्टि से अभी भी अनुमान ही है, जब तक व्यावसायिक उत्खनन और उत्पादन नहीं शुरू होता। ऐसे डील, पाकिस्तान में तेल और गैस क्षेत्रों के लिए अंतरराष्ट्रीय कंपनियों की रुचि जरूर बढ़ा सकते हैं।

चीन की भूमिका: क्या अमेरिकी साझेदारी टकराएगी?

पिछले दशक में चीन ने CPEC (चीन–पाकिस्तान आर्थिक गलियारे) के तहत पाकिस्तान में भारी निवेश किया है। सिंध, बलूचिस्तान, ग्वादर पोर्ट सहित कई ऊर्जा परियोजनाएं चीन फंड कर रहा है। नई अमेरिकी साझेदारी से यह प्रतिस्पर्धा बढ़ सकती है, मगर चीन की भूमिका अभी भी स्थिर बनी रहने की संभावना है।

भारत की प्रतिक्रिया: रणनीति या बयान-बाजी?

ट्रंप के ‘पाकिस्तान भारत को तेल बेच सकता है’ बयान को भारतीय राजनीतिक विश्लेषक सियासी दबाव रणनीति मानते हैं। भारत के पूर्व विदेश सचिवों और एक्सपर्ट्स का कहना है कि फिलहाल पाकिस्तान का तेल स्थानीय जरूरत भी पूरा नहीं कर पाता, एक्सपोर्ट की बात महज़ सियासी तंज ही है। भारत, अपने तेल आयात के लिए ईरान, सऊदीअरब, रूस जैसे बड़े देशों पर निर्भर करता है।

जनता की मिलीजुली प्रतिक्रिया

सोशल मीडिया पर पाकिस्तान के लोगों ने जहां इस एलान को उत्साह और उम्मीद के तौर पर देखा, वहीं सूत्रों, विश्लेषकों और एक बड़ी जनसंख्या ने इसे ‘हवा’ करार दिया। कईयों का कहना है कि ये डील, भारत पर दबाव बनाने का एक कूटनीतिक हथकंडा मात्र है।

निष्कर्ष: उम्मीदें, चुनौतियाँ और भविष्य

संक्षेप में, पाकिस्तान में तेल के बड़े भंडार होने वाकई संभावित हैं, लेकिन उन्हें व्यावसायिक रूप से साबित होने और उत्पादन के स्तर तक लाने के लिए समय, निवेश, उन्नत तकनीक और सुरक्षा जैसे पहलुओं पर काम करना होगा। ट्रंप–पाकिस्तान डील फिलहाल दोनों देशों को कूटनीतिक और कारोबारी मंच पर साथ ला सकती है, मगर असली क्रांति तभी आएगी जब जमीनी स्तर पर उत्पादन और स्थानीय अर्थव्यवस्था को असली फायदा मिले।

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